नमस्कारम्
य़ोग रतोवा, भोग रतोवा ।
सगं रतोवा,सगं विहीनह् ।।
यस्य बा्म्हणी, रमते चित्हः ।
ननंदति ननंदति ननंदतेवा् ।।
अर्थ- चाहे आप य़ोग में हो या भोग में हो
किसी के संग मे हो, य़ा किसी के संग के बिना हो
वह प्राणी जो ब्रह्माड के रचयीता को ध्यान मे रखता है
जो अपने आप को बंम्हाडड मे रमा लेता है
वह व्य़क्ति हमेंशा आनंद आनंद आनंदमय़ रहता है ।।
सतसंगत्वे , निसंगत्वम ।
निसंगत्वे , निेरमोहत्वम ।।
निरमोहत्वे , निश्चलतत्वम ।
निश्चलतत्वे ,जिवनमुक्ति ।।
अर्थ –
सत् के सगंत मे हो तो, बुराइयां आप का साथ छोड़ देगी।
बुराई का साथ छुटेगा तो,मोह माय़ा से मुक्त हो जाओगे ।।
मोह माया छुटने पर ,समभाव की भावना आती है ।
समभाव की भावना से,जिवन की मुक्ति होती है।।
पूनरपि जनंनम,पूनरपि मरणम् ।
पूनरपि जननि जठरे शयनम्।।
इह संसारे बहुदुस्तारे। (बहू दुखसारे)
कृपयापारे ताहि मुरारे।।
भज गोविंदम् भज गोविंदम् ।
गोविंदम भज मूढ मते् ।। 2
अर्थ-
फिर जन्म लेना ,फिर मरना।
पूनः जन्म लेना है,माता के कोख मे सोना है ।।
यह ससांर दूखो का सागर है, इस सागर को पार करने वाले कृपा के सागर मूरारी है।
सचमूच कठीन है ,इस ससांर को पार करना, भगवान तुम्ही पार उतारो ।।
तो हे तू प्राणी गोविदं भज,गोविदं भज, मूढ़ मति (मू्र्ख बूद्धि) वाले मनुष्य ।
भज गोविदम् भज गोविदम् भज गोविदम् भज गोविदम् ।।
Thank u.
ReplyDeleteThank you so much for this elaborated explaination. I really relate to
ReplyDeletePunarapi Jananam Punarapi Maranam
Iha samsare Bahudustare,
Krupaya pare paahimurare.
Om Shambho.
explaination. I really relate to
ReplyDeletePunarapi Jananam Punarapi Maranam
Iha samsare Bahudustare,
Krupaya pare paahimurare.
Om Shambho.